Wednesday, March 24, 2010
देश की राजधानी में हिंदी की स्थिति
कल शाम को अपने बॉस के साथ बस यूँ ही बहुमंजिला इमारत से नीचे उतरा एक ब्रेक लेने के लिए.मेरा दफ्तर देश की राजधानी दिल्ली के ह्रदय स्थल कनाट सर्कस जैसी महंगी जगह पर हैं जहाँ लोग दूसरों को बड़े गर्व के साथ बताते हैं कि वो अमुक कंपनी में काम करते हैं और उनका दफ्तर कनाट प्लेस पर है.खैर नीचे उतरने पर कोने की दुकान पर खड़े हुए एक बहुराष्ट्रीय पब्लिशिंग कंपनी के बोर्ड पर नज़र गयी जिसमे कंपनी ने अपने किताबों पर ८० प्रतिशत तक की छुट का दावा किया था। उत्सुकुतावश अन्दर गया तो पाया लगभग ५००० वर्ग फीट के क्षेत्रफल में फैली हुई दुकान , अच्छी तरह से प्रशिक्षित सेल्स मेन सब कुछ उपलब्ध था जो एक अच्छे शोरूम में होना चाहिए। विश्व के लगभग सभी चोटीके नाम चीन साहित्यकारों की अंग्रेजी में उपलब्ध साहित्य बड़े करीने से लगा हुआ था। चूंकि मुझे हिंदी साहित्य में रूचि है इसलिए मैंने हिंदी का कोना खोजने की कोशिश की किन्तु मुझे नहीं मिला। इस स्थिति में मैंने सेल्स मेन से इसके बारे में पूछा तो उसने मुझे ऐसे देखा कि मैंने उससे हिंदी में नहीं किसी और भाषा में बात की हो....फिर भी वो मुझे बिलिंग काउंटर के पीछे एक पतली सी जगह में ले गया और एक छोटी सी बुक शेल्फ की तरफ इशारा कर दिया। बुक सेल्फ थी या फिर कर्मचारियों का आरामगाह .......शेल्फ से ही लगा उनका रेस्टरूम था जहाँ पर वो फुर्सत से बैठते हैं। मुश्किल से १०० कुल जमा किताबें जिनमे अधिकतर आज कल के तथा कथित मैनेजमेंट गुरुओं के इंग्लिश पुस्तकों के हिंदी अनुवाद थे....एक दो पुस्तकों के बारे में जानकारी करनी चाही तो उसे स्टोर मेनेजर भी नहीं बता पाया.तभी उसी सेल्फ में दबी हुई एक किताब पर नज़र गयी तो पाया कि वो गाँधी जी की हिंद स्वराज थी जिसे उन्होंने ने अफ्रीका से लौटते समय जहाज में लिखा था...बाद में किताब पड़ने पर लगा कि शायद ऐसी हिंदी और हिंदुस्तान की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं होगी.....जो भी हो हिंद स्वराज खरीदकर उसे सेल्स मेन से विशेष रूप से कह कर लाल पन्नी में पैक करा के ऑफिस कि लिए निकल पड़ा और उसे चुप चाप बैग में रख दिया कि कोई यह न कहे कि क्या यार हिंदी किताब पढ़ते हो!!!!!!!!!!!!!!!!!!
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8 comments:
बहुत खूब मियां... सही लिखा है मित्र... थोडा वक्त इस ब्लॉग को दिया कीजिये, हम भी कुछ पढते रहा करेंगे....
Nice Post...
Word Verification से कमेंट्स करने वालों को असुविधा होती है...
हम खुद हिन्दी के दुश्मन हैं ,किताब खरीदी मगर कोई देख न ले ...
वाह भाई क्या कहू मैं ....
आप पन्नी में छुपा कर लाये ? आपको हिन्दी किताब पढने में शर्म आयी ? मुंबई में स्थिति और बदतर है, फिर भी जहां ऐसी स्थिति पता हूँ दुकानदार को धिक्कारता हूँ.(अंगरेजी में ही सही )
लेकिन वसुस्थिति यह भी है की हमने अपने बच्चों को अंगरेजी पढ़ाई तो बिकेगा क्या ?
बाज़ार में जो बिकता है दुकानदार वही माल रखता है .
फिर भी आपका स्वागत है !
फिरदौस का कमेन्ट पढ़ लें .
Firdaus i have removed word verification..
Dear Alka & Raj
Sach likhne ki koshish kee hai..Thanks for your valuable comments..
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
kudos to ur hindi.. abhi tak ye talent kahan chupa rakkha tha...!
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