मन व्यथित हो गया आज टेलीविजन पर २ अलग अलग घटनाओं की खबर सुनकर. पहली घटना कल रात की है जिसमे एक लड़का और लड़की राजीव चौक स्टेशन पर मेट्रो की की चपेट में आ गए और दूसरी नॉएडा में ग्रेट इंडिया प्लेस के सामने एक मोटर साइकिल सवार की दुर्घटना में म्रत्यु!!!
कल रात को जैसा कि अमूमन होता है मेट्रो में हर किसी को घुसने की आपा धापी और घर पहुँचने की जल्दी...और उस पर दिल्ली मेट्रो का सबसे व्यस्ततम स्टेशन राजीव चौक.एक लड़की महज़बीं भी अपने घर जाने के लिए स्टेशन पर खड़ी थी. ट्रेन आने के ऐनवक्त पर ट्रैक पर जा गिरी. जिसमे उसके दोनों पैर कट कर अलग हो गए. आज उस लड़की के फोटो देखे, मन द्रवित हो गया.... स्ट्रेचर पर लेटी हुई लड़की चीख रही है. और चीखते चीखते बेहोश हो जाती है... दो लोग जो हॉस्पिटल से आये हैं वो उसे लिए जा रहे हैं साथ में तमाशबीनों की भीड़ भी साथ साथ चल रही है लेकिन कोई नहीं है जो उसे सांत्वना दे सके, उसे धैर्य बंधा सके, शायद प्रकृति के सुरम्य आँचल देहरादून से आयी यह युवा पत्रकार बड़े शहरों के छद्म सरोकारों से अनभिज्ञ थी कि एक ऐसा शहर जहाँ पर हर कोई अपनी खुशी में खोया हुआ है,जहाँ पर किसी के पास किसी के लिए कोई समय नहीं है...शायद इसी लिए वो अपनी आँखों से ऐसे बदलते सरोकारों के शहर के लोगो को देखने का साहस नहीं जुटा पायी और बेहोश हो गयी..
दूसरा दिल्ली एनसीआर का उभरता हुआ उपनगर नॉएडा, और नॉएडा के सबसे पॉश सेक्टर १८ के सामने की सड़क...एक बाईक सवार को एक डम्पर रौंदता हुआ निकल जाता है और उस शख्स की उसी समय उसी जगह मौत हो जाती है. उसके बाद वही एक स्वाभाविक दृश्य, चारों तरफ तमाशबीनो का हुजूम और २-४ पुलिस वाले जिम्मेदार और जबाबदेह होने का अभिनय करते हुए... इन सबके बीच अगर कुछ झकझोरने के लिए होता है तो सड़क के बीचो बीच पड़ी हुई एक मृत देह जो अपने आप से जुड़े लोगों के सपने अधूरे छोड़ कर जा चुकी है..एक माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा, किसी पत्नी का पति,किसी का पिता,अपनी अधूरी ज़िन्दगी लेकर चला जाता है....कौन है जिम्मेदार इन सबके लिए ??? वो पुलिस वाले जो हर गली नुक्कड़ पर खड़े हो कर हर ट्रक वाले से अवैध वसूली करते हैं और उन्हें नो एंट्री ज़ोन में घुसने देते हैं अगर ऐसा नहीं है तो डम्पर इस एरिया में आया कैसे??
यह तो खैर सिस्टम की बात है जिसके सुधरने की हम सिर्फ कामना और दुआ कर सकते हैं और कुछ नहीं. लेकिन यहाँ पर दोनों दुर्घटनाओं में अगर कुछ शोचनीय है वो है हमारी और हमारे समाज की संवेदनहीनता जो एक चीखती हुई लड़की और अपने पति के पार्थिव शरीर पर करुण क्रन्दन करती हुई महिला की चीखों को सुनकर नहीं जागता... लगता है कलियुग के प्रभाव ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है... कलि भी सोचता होगा कि इतनी तो निष्ठुरता तो उसमे भी नहीं है.....आखिर क्या हो गया है हमें हमारी संवेदनाओं को??? यह कौन सी विकास यात्रा पर चल रहे हैं हम?????
Saturday, March 27, 2010
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