Wednesday, January 14, 2009

अनचाहा सफर

मैं कौन हूँ ? इस शहर की भीड़ में, इस देश की राजधानी के अन्दर कंक्रीट के जंगलो में किसी फ्लैट नाम के पेड़ के नीचे माघ मास की इस सर्दीली शाम में मैं ढूंढ रहा हूँ आपने आप को जो कौन है ? कहाँ से आया है? इस हाँफते दौड़ते शहर की दम घोंटू फिजा में मैं ढूंढ रहा हूँ उस शाम को जो दूर रेलवे पुल के पास के मन्दिर की घंटियों की आवाज़ के जरिये अपने होने का एहसास दिलाती थी। वो इठलाती, इतराती चाँद की चांदनी के बीच किसी अनजान जंगली जानवर की आवाज़, देर रात तक गाँव के बाहर वो गुल्ली डंडा खेलना और फ़िर उसके बाद नानी माँ की वो फटकार , लगता है कि कहाँ गुम हो गया है ये सब ? ?
रोजी रोटी की तलाश में भागते भागते सब कहीं बहुत दूर छूट गया है ?

2 comments:

Unknown said...

the poemwhich shows the pain of a common man migrated from the rural to urban India.

Bhanu Pratap Singh Yadav said...

ये सबसे बेहतर है.. इसे पढते वक्त इस लेख का सच भी मैंने महसूस किया... इसी को लेखन कहते हैं, कि पढ़ने वाले कि आँखों में मंजर तैरने लगे... बहुत अच्छा...