जमानो बाद आज ब्लोग पेज देखा, स्वान्तः सुखाय कुछ लिखून्गा शीघ्र ही.
Friday, December 28, 2018
Saturday, March 27, 2010
संवेदनहीन समाज और सुषुप्त प्रायः मानवता
मन व्यथित हो गया आज टेलीविजन पर २ अलग अलग घटनाओं की खबर सुनकर. पहली घटना कल रात की है जिसमे एक लड़का और लड़की राजीव चौक स्टेशन पर मेट्रो की की चपेट में आ गए और दूसरी नॉएडा में ग्रेट इंडिया प्लेस के सामने एक मोटर साइकिल सवार की दुर्घटना में म्रत्यु!!!
कल रात को जैसा कि अमूमन होता है मेट्रो में हर किसी को घुसने की आपा धापी और घर पहुँचने की जल्दी...और उस पर दिल्ली मेट्रो का सबसे व्यस्ततम स्टेशन राजीव चौक.एक लड़की महज़बीं भी अपने घर जाने के लिए स्टेशन पर खड़ी थी. ट्रेन आने के ऐनवक्त पर ट्रैक पर जा गिरी. जिसमे उसके दोनों पैर कट कर अलग हो गए. आज उस लड़की के फोटो देखे, मन द्रवित हो गया.... स्ट्रेचर पर लेटी हुई लड़की चीख रही है. और चीखते चीखते बेहोश हो जाती है... दो लोग जो हॉस्पिटल से आये हैं वो उसे लिए जा रहे हैं साथ में तमाशबीनों की भीड़ भी साथ साथ चल रही है लेकिन कोई नहीं है जो उसे सांत्वना दे सके, उसे धैर्य बंधा सके, शायद प्रकृति के सुरम्य आँचल देहरादून से आयी यह युवा पत्रकार बड़े शहरों के छद्म सरोकारों से अनभिज्ञ थी कि एक ऐसा शहर जहाँ पर हर कोई अपनी खुशी में खोया हुआ है,जहाँ पर किसी के पास किसी के लिए कोई समय नहीं है...शायद इसी लिए वो अपनी आँखों से ऐसे बदलते सरोकारों के शहर के लोगो को देखने का साहस नहीं जुटा पायी और बेहोश हो गयी..
दूसरा दिल्ली एनसीआर का उभरता हुआ उपनगर नॉएडा, और नॉएडा के सबसे पॉश सेक्टर १८ के सामने की सड़क...एक बाईक सवार को एक डम्पर रौंदता हुआ निकल जाता है और उस शख्स की उसी समय उसी जगह मौत हो जाती है. उसके बाद वही एक स्वाभाविक दृश्य, चारों तरफ तमाशबीनो का हुजूम और २-४ पुलिस वाले जिम्मेदार और जबाबदेह होने का अभिनय करते हुए... इन सबके बीच अगर कुछ झकझोरने के लिए होता है तो सड़क के बीचो बीच पड़ी हुई एक मृत देह जो अपने आप से जुड़े लोगों के सपने अधूरे छोड़ कर जा चुकी है..एक माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा, किसी पत्नी का पति,किसी का पिता,अपनी अधूरी ज़िन्दगी लेकर चला जाता है....कौन है जिम्मेदार इन सबके लिए ??? वो पुलिस वाले जो हर गली नुक्कड़ पर खड़े हो कर हर ट्रक वाले से अवैध वसूली करते हैं और उन्हें नो एंट्री ज़ोन में घुसने देते हैं अगर ऐसा नहीं है तो डम्पर इस एरिया में आया कैसे??
यह तो खैर सिस्टम की बात है जिसके सुधरने की हम सिर्फ कामना और दुआ कर सकते हैं और कुछ नहीं. लेकिन यहाँ पर दोनों दुर्घटनाओं में अगर कुछ शोचनीय है वो है हमारी और हमारे समाज की संवेदनहीनता जो एक चीखती हुई लड़की और अपने पति के पार्थिव शरीर पर करुण क्रन्दन करती हुई महिला की चीखों को सुनकर नहीं जागता... लगता है कलियुग के प्रभाव ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है... कलि भी सोचता होगा कि इतनी तो निष्ठुरता तो उसमे भी नहीं है.....आखिर क्या हो गया है हमें हमारी संवेदनाओं को??? यह कौन सी विकास यात्रा पर चल रहे हैं हम?????
कल रात को जैसा कि अमूमन होता है मेट्रो में हर किसी को घुसने की आपा धापी और घर पहुँचने की जल्दी...और उस पर दिल्ली मेट्रो का सबसे व्यस्ततम स्टेशन राजीव चौक.एक लड़की महज़बीं भी अपने घर जाने के लिए स्टेशन पर खड़ी थी. ट्रेन आने के ऐनवक्त पर ट्रैक पर जा गिरी. जिसमे उसके दोनों पैर कट कर अलग हो गए. आज उस लड़की के फोटो देखे, मन द्रवित हो गया.... स्ट्रेचर पर लेटी हुई लड़की चीख रही है. और चीखते चीखते बेहोश हो जाती है... दो लोग जो हॉस्पिटल से आये हैं वो उसे लिए जा रहे हैं साथ में तमाशबीनों की भीड़ भी साथ साथ चल रही है लेकिन कोई नहीं है जो उसे सांत्वना दे सके, उसे धैर्य बंधा सके, शायद प्रकृति के सुरम्य आँचल देहरादून से आयी यह युवा पत्रकार बड़े शहरों के छद्म सरोकारों से अनभिज्ञ थी कि एक ऐसा शहर जहाँ पर हर कोई अपनी खुशी में खोया हुआ है,जहाँ पर किसी के पास किसी के लिए कोई समय नहीं है...शायद इसी लिए वो अपनी आँखों से ऐसे बदलते सरोकारों के शहर के लोगो को देखने का साहस नहीं जुटा पायी और बेहोश हो गयी..
दूसरा दिल्ली एनसीआर का उभरता हुआ उपनगर नॉएडा, और नॉएडा के सबसे पॉश सेक्टर १८ के सामने की सड़क...एक बाईक सवार को एक डम्पर रौंदता हुआ निकल जाता है और उस शख्स की उसी समय उसी जगह मौत हो जाती है. उसके बाद वही एक स्वाभाविक दृश्य, चारों तरफ तमाशबीनो का हुजूम और २-४ पुलिस वाले जिम्मेदार और जबाबदेह होने का अभिनय करते हुए... इन सबके बीच अगर कुछ झकझोरने के लिए होता है तो सड़क के बीचो बीच पड़ी हुई एक मृत देह जो अपने आप से जुड़े लोगों के सपने अधूरे छोड़ कर जा चुकी है..एक माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा, किसी पत्नी का पति,किसी का पिता,अपनी अधूरी ज़िन्दगी लेकर चला जाता है....कौन है जिम्मेदार इन सबके लिए ??? वो पुलिस वाले जो हर गली नुक्कड़ पर खड़े हो कर हर ट्रक वाले से अवैध वसूली करते हैं और उन्हें नो एंट्री ज़ोन में घुसने देते हैं अगर ऐसा नहीं है तो डम्पर इस एरिया में आया कैसे??
यह तो खैर सिस्टम की बात है जिसके सुधरने की हम सिर्फ कामना और दुआ कर सकते हैं और कुछ नहीं. लेकिन यहाँ पर दोनों दुर्घटनाओं में अगर कुछ शोचनीय है वो है हमारी और हमारे समाज की संवेदनहीनता जो एक चीखती हुई लड़की और अपने पति के पार्थिव शरीर पर करुण क्रन्दन करती हुई महिला की चीखों को सुनकर नहीं जागता... लगता है कलियुग के प्रभाव ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है... कलि भी सोचता होगा कि इतनी तो निष्ठुरता तो उसमे भी नहीं है.....आखिर क्या हो गया है हमें हमारी संवेदनाओं को??? यह कौन सी विकास यात्रा पर चल रहे हैं हम?????
Wednesday, March 24, 2010
देश की राजधानी में हिंदी की स्थिति
कल शाम को अपने बॉस के साथ बस यूँ ही बहुमंजिला इमारत से नीचे उतरा एक ब्रेक लेने के लिए.मेरा दफ्तर देश की राजधानी दिल्ली के ह्रदय स्थल कनाट सर्कस जैसी महंगी जगह पर हैं जहाँ लोग दूसरों को बड़े गर्व के साथ बताते हैं कि वो अमुक कंपनी में काम करते हैं और उनका दफ्तर कनाट प्लेस पर है.खैर नीचे उतरने पर कोने की दुकान पर खड़े हुए एक बहुराष्ट्रीय पब्लिशिंग कंपनी के बोर्ड पर नज़र गयी जिसमे कंपनी ने अपने किताबों पर ८० प्रतिशत तक की छुट का दावा किया था। उत्सुकुतावश अन्दर गया तो पाया लगभग ५००० वर्ग फीट के क्षेत्रफल में फैली हुई दुकान , अच्छी तरह से प्रशिक्षित सेल्स मेन सब कुछ उपलब्ध था जो एक अच्छे शोरूम में होना चाहिए। विश्व के लगभग सभी चोटीके नाम चीन साहित्यकारों की अंग्रेजी में उपलब्ध साहित्य बड़े करीने से लगा हुआ था। चूंकि मुझे हिंदी साहित्य में रूचि है इसलिए मैंने हिंदी का कोना खोजने की कोशिश की किन्तु मुझे नहीं मिला। इस स्थिति में मैंने सेल्स मेन से इसके बारे में पूछा तो उसने मुझे ऐसे देखा कि मैंने उससे हिंदी में नहीं किसी और भाषा में बात की हो....फिर भी वो मुझे बिलिंग काउंटर के पीछे एक पतली सी जगह में ले गया और एक छोटी सी बुक शेल्फ की तरफ इशारा कर दिया। बुक सेल्फ थी या फिर कर्मचारियों का आरामगाह .......शेल्फ से ही लगा उनका रेस्टरूम था जहाँ पर वो फुर्सत से बैठते हैं। मुश्किल से १०० कुल जमा किताबें जिनमे अधिकतर आज कल के तथा कथित मैनेजमेंट गुरुओं के इंग्लिश पुस्तकों के हिंदी अनुवाद थे....एक दो पुस्तकों के बारे में जानकारी करनी चाही तो उसे स्टोर मेनेजर भी नहीं बता पाया.तभी उसी सेल्फ में दबी हुई एक किताब पर नज़र गयी तो पाया कि वो गाँधी जी की हिंद स्वराज थी जिसे उन्होंने ने अफ्रीका से लौटते समय जहाज में लिखा था...बाद में किताब पड़ने पर लगा कि शायद ऐसी हिंदी और हिंदुस्तान की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं होगी.....जो भी हो हिंद स्वराज खरीदकर उसे सेल्स मेन से विशेष रूप से कह कर लाल पन्नी में पैक करा के ऑफिस कि लिए निकल पड़ा और उसे चुप चाप बैग में रख दिया कि कोई यह न कहे कि क्या यार हिंदी किताब पढ़ते हो!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Sunday, September 13, 2009
Wednesday, January 14, 2009
अनचाहा सफर
मैं कौन हूँ ? इस शहर की भीड़ में, इस देश की राजधानी के अन्दर कंक्रीट के जंगलो में किसी फ्लैट नाम के पेड़ के नीचे माघ मास की इस सर्दीली शाम में मैं ढूंढ रहा हूँ आपने आप को जो कौन है ? कहाँ से आया है? इस हाँफते दौड़ते शहर की दम घोंटू फिजा में मैं ढूंढ रहा हूँ उस शाम को जो दूर रेलवे पुल के पास के मन्दिर की घंटियों की आवाज़ के जरिये अपने होने का एहसास दिलाती थी। वो इठलाती, इतराती चाँद की चांदनी के बीच किसी अनजान जंगली जानवर की आवाज़, देर रात तक गाँव के बाहर वो गुल्ली डंडा खेलना और फ़िर उसके बाद नानी माँ की वो फटकार , लगता है कि कहाँ गुम हो गया है ये सब ? ?
रोजी रोटी की तलाश में भागते भागते सब कहीं बहुत दूर छूट गया है ?
रोजी रोटी की तलाश में भागते भागते सब कहीं बहुत दूर छूट गया है ?
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