Sunday, September 13, 2009
Wednesday, January 14, 2009
अनचाहा सफर
मैं कौन हूँ ? इस शहर की भीड़ में, इस देश की राजधानी के अन्दर कंक्रीट के जंगलो में किसी फ्लैट नाम के पेड़ के नीचे माघ मास की इस सर्दीली शाम में मैं ढूंढ रहा हूँ आपने आप को जो कौन है ? कहाँ से आया है? इस हाँफते दौड़ते शहर की दम घोंटू फिजा में मैं ढूंढ रहा हूँ उस शाम को जो दूर रेलवे पुल के पास के मन्दिर की घंटियों की आवाज़ के जरिये अपने होने का एहसास दिलाती थी। वो इठलाती, इतराती चाँद की चांदनी के बीच किसी अनजान जंगली जानवर की आवाज़, देर रात तक गाँव के बाहर वो गुल्ली डंडा खेलना और फ़िर उसके बाद नानी माँ की वो फटकार , लगता है कि कहाँ गुम हो गया है ये सब ? ?
रोजी रोटी की तलाश में भागते भागते सब कहीं बहुत दूर छूट गया है ?
रोजी रोटी की तलाश में भागते भागते सब कहीं बहुत दूर छूट गया है ?
Subscribe to:
Posts (Atom)